पहली आरती
जय जय चामुण्डा चण्ड-मुण्ड सँहारी।
जय जय चामुण्डा भक्त जनन भय हारी॥
जय महिषासुर के मान भंग कर डाले।
जय शुम्भ-निशुम्भ से बड़े निशाचर मारे॥
जय मधु-कैटभ और रक्त बीज संहारे।
जय धूम्रकेतु से पापी दुष्ट पठारे॥
तेरा यह सारा विश्व ऋणी है भारी।
जय जय चामुण्डा भक्त जनन भय हारी॥
जय जय चामुण्डा चण्ड-मुण्ड सँहारी।
जय जय चामुण्डा भक्त जनन भय हारी॥
इस जग में ज्योति राज़ रही माँ तेरी।
मंदिर में प्रतिमा साज़ रही माँ तेरी॥
घर घर में जय जय गूंज रही माँ तेरी।
मन मन में मुरलिया बाज रही माँ तेरी॥
तेरा गुण गाते माँ हर्ष हर्ष नर नारी।
जय जय चामुण्डा भक्त जनन भय हारी॥
जय जय चामुण्डा चण्ड-मुण्ड सँहारी।
जय जय चामुण्डाभक्त जनन भय हारी॥
तेरा जो करता श्रद्धा से नित दर्शन।
तेरा जो करताभक्ति भाव से पूजन॥
नतमस्तक ही हो कर करता जो अर्चन।
छंट जाते उसकेजन्म जन्म के बंधन॥
यह अनुभव कह लिख गए लोग हितकारी।
जय जय चामुण्डा भक्त जनन भय हारी॥
जय जय चामुण्डा चण्ड-मुण्ड सँहारी।
जय जय चामुण्डा भक्त जनन भय हारी॥
यह सुन कर के माँ तेरी सरण में आया।
और भक्ति भाव से पुष्प बूथ कर लाया॥
निर्धन के अंगीकार करो यह माया।
इससे अच्छा उपहार न घर में पाया॥
पलवारी दे सब ढूंढे अठा अठारी।
जय जय चामुण्डाभक्त जनन भय हारी॥
जय जय चामुण्डा चण्ड-मुण्ड सँहारी।
जय जय चामुण्डा भक्त जनन भय हारी॥
दूसरी आरती
ॐ जय अम्बे गौरी,मैया जय श्यामा गौरी
तुम को निस दिन ध्यावतहरि ब्रह्मा शिवजी॥
ॐ जय अम्बे गौरी
माँग सिन्दूर विराजत,टीको मृग मद को।
उज्ज्वल से दो नैनाचन्द्रवदन नीको॥
ॐ जय अम्बे गौरी
कनक समान कलेवर,रक्ताम्बर राजै।
रक्त पुष्प गले माला,कण्ठ पर साजे॥
ॐ जय अम्बे गौरी
केहरि वाहन राजत,खड्ग कृपाण धारी।
सुर नर मुनि जन सेवत,तिनके दुख हारी॥
ॐ जय अम्बे गौरी
कानन कुण्डल शोभित,नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर,सम राजत ज्योति॥
ॐ जय अम्बे गौरी
शम्भु निशम्भु बिडारे,महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना,निशदिन मदमाती॥
ॐ जय अम्बे गौरी
चण्ड मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे ,सुर भयहीन करे॥
ॐ जय अम्बे गौरी
ब्रह्माणी रुद्राणी ,तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानीतुम शिव पटरानी॥
ॐ जय अम्बे गौरी
चौंसठ योगिन गावतनृत्य करत भैरों।
बाजत ताल मृदंगऔर बाजत डमरू॥
ॐ जय अम्बे गौरी
तुम हो जग की माता,तुम ही हो भर्ता।
भक्तन की दुख हर्ता ,सुख सम्पति कर्ता॥
ॐ जय अम्बे गौरी
भुजा चार अति शोभित,वर मुद्रा धारी।
मन वाँछित फल पावत,सेवत नर नारी॥
ॐ जय अम्बे गौरी
कंचन थाल विराजत।अगर कपूर बाती।
माल केतु में राजत,कोटि रतन ज्योती॥
ॐ जय अम्बे गौरी
माँ अम्बे की आरतीजो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामीसुख सम्पति पावे॥
ॐ जय अम्बे गौरी