श्री गणेश चतुर्थी कथा

श्री गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी या गणेशोत्सव के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू भगवान गणेश के जन्म की याद में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। यह त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र और कर्नाटक में इसे विशेष रूप से भव्यता के साथ मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस पर्व के दौरान भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। यह त्योहार व्यक्तिगत रूप से घरों में और सार्वजनिक रूप से विशाल पंडालों में गणेश की प्रतिमा की स्थापना के साथ मनाया जाता है। प्रमुख स्थानों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं, जिनका नौ दिनों तक पूजन किया जाता है। आसपास के क्षेत्र से बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं। नौ दिन बाद, गानों और बाजों के साथ गणेश प्रतिमा का किसी तालाब, महासागर आदि जल स्रोत में विसर्जन किया जाता है।

श्री गणेश चतुर्थी की कथा

शिवपुराण के अंतर्गत रुद्रसंहिता के चतुर्थ (कुमार) खंड में इस कथा का वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न किया और उसे अपने द्वार का पालक बना दिया। जब शिवजी प्रवेश करना चाहते थे, तब उस बालक ने उन्हें रोक दिया। इसके कारण शिवगणों ने बालक से युद्ध किया, लेकिन कोई भी उसे पराजित नहीं कर सका।

अंततः भगवान शिव ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया।

इससे माता पार्वती क्रोधित हो गईं और प्रलय करने का निर्णय कर लिया। भयभीत देवताओं ने नारद मुनि की सलाह पर माता पार्वती की स्तुति की और उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर भगवान विष्णु उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। भगवान शिव ने उस हाथी के सिर को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने उस गजमुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और उसे देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया।

ब्रह्मा, विष्णु, और महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित किया और उसे अग्रपूज्य होने का वरदान दिया।

भगवान शिव ने कहा, “गिरिजानंदन! विघ्नों को नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष होगा।”

श्री गणेशजी का जन्म भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को हुआ था, और इस दिन व्रत करने से सभी विघ्नों का नाश होता है और सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इस दिन श्री गणेश की पूजा करने के बाद व्रती चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान्न अर्पित करता है और फिर स्वयं मीठा भोजन ग्रहण करता है।

जो व्यक्ति श्री गणेश चतुर्थी का व्रत करता है, उसकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं।

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