साल भर के इंतजार के बाद एक बार फिर दिवाली का हर्षोल्लास से भरा पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को दीपावली का पर्व मनाया जाता है, जो विशेष रूप से माता लक्ष्मी और भगवान गणेश जी की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन की पूजा और लक्ष्मी जी की आराधना करने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दिवाली क्यों मनाई जाती है? यदि नहीं, तो आपको बता दें कि दीपावली से जुड़ी कई कथाएं शास्त्रों में वर्णित हैं। आइए जानें-
दीपावली से पहले छोटी दीपावली क्यों मनाई जाती है?
भगवान विष्णु ने अपने 8वें अवतार, श्रीकृष्ण के रूप में, राक्षस नरकासुर का संहार किया था। नरकासुर नामक राक्षस ने जब तीनों लोकों में अपने आतंक से हाहाकार मचा दिया, तब अपनी शक्ति के कारण वह अहंकारी हो गया और अपनी प्रजा के साथ-साथ देवताओं के लिए भी खतरा बन गया। उसने आतंक का शासन चलाया और अमरत्व पाने के लिए देवताओं की 16 हजार कन्याओं की बलि देने के लिए उनका अपहरण किया था। तब सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनि उसके अत्याचार से अत्यंत परेशान हो गए थे। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध कर सभी को उसके अत्याचार से मुक्त किया। इस विजय के उपलक्ष्य में दो दिन तक उत्सव मनाया गया, जिसे नरक चतुर्दशी (छोटी दीपावली) और दीपावली के रूप में जाना जाता है।
क्यों मनाते हैं दिवाली का त्यौहार?
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को भगवान श्रीराम 14 वर्षों के वनवास की अवधि पूर्ण कर अपनी जन्मभूमि अयोध्या लौटे थे। इस खुशी में अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर भव्य दीपोत्सव का आयोजन किया और भगवान श्रीराम का स्वागत किया। तभी से हर साल कार्तिक अमावस्या के दिन उसी उत्साह और उल्लास के साथ दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर घरों के साथ-साथ आस-पास की जगहों को भी दीपों और रोशनी से सजाया जाता है।
दीपावली पर माता लक्ष्मी की पूजा क्यों की जाती है?
जब देवता और असुर समुद्र मंथन कर रहे थे, तब उस मंथन से 14 रत्नों की उत्पत्ति हुई थी, जिनमें माता लक्ष्मी भी शामिल थीं। मान्यता है कि माता लक्ष्मी का जन्म कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को हुआ था, इसलिए इस दिन दीपावली के अवसर पर भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से सुख-समृद्धि, धन, यश और वैभव की प्राप्ति होती है, और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
महाभारत काल में दीपावली क्यों मनाई गई थी?
महाभारत काल में कौरवों ने, शकुनी मामा की सहायता से शतरंज के खेल में पांडवों को छलपूर्वक पराजित कर उनका सारा राज्य छीन लिया और उन्हें 13 वर्षों के लिए वनवास पर भेज दिया। कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को पांडव 13 वर्षों का वनवास पूरा करके अपने घर लौटे थे। जब पांडव वापस लौटे, तो उनके आगमन की खुशी में नगरवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया।
माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पौराणिक कथा
मंगल के दाता श्री गणेश, धन की देवी माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र माने जाते हैं। एक बार माता लक्ष्मी को अपने धन और वैभव पर अभिमान हो गया था। तब भगवान विष्णु ने कहा कि यद्यपि संसार आपकी पूजा करता है और आपको पाने के लिए व्याकुल रहता है, फिर भी आप पूर्ण नहीं हैं। यह सुनकर माता लक्ष्मी ने पूछा, ‘मैं किस कारण से अपूर्ण हूं?’ भगवान विष्णु ने उत्तर दिया, ‘जब तक कोई स्त्री मां नहीं बनती, वह पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकती। चूंकि आपके कोई संतान नहीं है, इसलिए आप अपूर्ण हैं।’ यह सुनकर माता लक्ष्मी को बहुत दुख हुआ।
माता लक्ष्मी को दुखी देखकर, माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को लक्ष्मी की गोद में बिठा दिया। तब से भगवान गणेश को माता लक्ष्मी का दत्तक पुत्र माना जाने लगा। श्रीगणेश को दत्तक पुत्र के रूप में पाकर माता लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हुईं और उन्होंने गणेशजी को वरदान दिया कि जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा नहीं करेगा, लक्ष्मी उसके पास नहीं टिकेगी। इसी कारण दीपावली के पूजन में माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की पूजा अनिवार्य मानी जाती है।
दीपावली पूजा मुहूर्त
दीपावली के दिन प्रदोषकाल में माता लक्ष्मी जी की पूजा होती है। मान्यता है कि इस समय लक्ष्मी जी की पूजा करने से मनुष्य को कभी दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ता।
पूजा में आवश्यक साम्रगी
महालक्ष्मी पूजा के लिए आपको रोली, चावल, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, घी या तेल से भरे दीपक, कलावा, नारियल, गंगाजल, गुड़, फल, फूल, मिठाई, दूर्वा, चंदन, पंचामृत, मेवे, खील, बताशे, चौकी, कलश, फूलों की माला, शंख, लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति, पूजा की थाली, चांदी का सिक्का, 11 दिए जैसी वस्तुएं एकत्रित करनी चाहिए। माताजी को पुष्पों में कमल और गुलाब प्रिय हैं, और फलों में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार और सिंघाड़े पसंद हैं। सुगंध के लिए केवड़ा, गुलाब और चंदन का इत्र पूजा में अवश्य इस्तेमाल करें। इसके अलावा, अन्य पूजन सामग्रियों में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर और भोजपत्र का उपयोग करना चाहिए।
दीपावली पूजा विधि
कार्तिक अमावस्या के दिन प्रातः स्नान करके सभी देवताओं की पूजा करें। शाम को लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्तियों को चौकी पर स्वस्तिक बनाकर स्थापित करें। मूर्तियों के सामने जल से भरा हुआ कलश रखें और शुद्धि मंत्र का उच्चारण करके जल छिड़कें।
लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा के लिए गुड़, फल, फूल, मिठाई, चंदन, पंचामृत, मेवे, खील, बताशे आदि का उपयोग करें। साथ ही देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, काली मां और कुबेर देव की भी पूजा करें।
तैयारी
चौकी पर लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम की ओर हो। लक्ष्मी जी गणेश जी की दाहिनी ओर रहें। पूजन करने वाला मूर्तियों के सामने बैठे। कलश को लक्ष्मी जी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस तरह लपेटें कि उसका अग्रभाग दिखाई दे और उसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण देवता का प्रतीक है।
दो बड़े दीपक रखें—एक में घी और दूसरे में तेल भरें। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें और दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अलावा एक दीपक गणेश जी के पास भी रखें।
मूर्तियों वाली चौकी के सामने एक छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश के पास चावल से नौ ढेरियां बनाएं, जो नवग्रह की प्रतीक हैं। गणेश जी की ओर चावल से सोलह ढेरियां बनाएं, जो सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह और सोलह मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।
स्वस्तिक के बीच में एक सुपारी रखें और चारों कोनों पर चावल की ढेरियां बनाएं। सबसे ऊपर, बीच में ‘ॐ’ का चिन्ह अंकित करें। छोटी चौकी के सामने तीन थालियां और जल भरा कलश रखें। थालियों की व्यवस्था इस प्रकार करें: 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, और एक दीपक।
इन थालियों के सामने यजमान बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। यदि कोई आगंतुक हो, तो वह आपके या आपके परिवार के पीछे बैठे।
पूजा की संक्षिप्त विधि
“ब्रह्मपुराण” के अनुसार, आधी रात तक रहने वाली अमावस्या तिथि ही महालक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। यदि अमावस्या आधी रात तक नहीं होती, तो प्रदोष व्यापिनी तिथि का चयन करना चाहिए। लक्ष्मी पूजा और दीपदान के लिए प्रदोषकाल विशेष रूप से शुभ माना गया है।
दीपावली पूजन के लिए पूजा स्थल एक दिन पहले से सजाना चाहिए, और पूजन सामग्री पहले से ही एकत्र कर लेनी चाहिए। यदि पूजा में माता लक्ष्मी की पसंद का ध्यान रखा जाए तो शुभता की वृद्धि होती है। माता लक्ष्मी के प्रिय रंग लाल और गुलाबी हैं। उनके प्रिय फूल कमल और गुलाब हैं। पूजा में फलों का भी विशेष महत्व होता है—श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार, और सिंघाड़े माता को प्रिय हैं, इनमें से कोई भी फल पूजा में अर्पित कर सकते हैं। अनाज के रूप में चावल रखें। मिठाई में शुद्ध केसर से बनी मिठाई या हलवा, शीरा, और नैवेद्य पसंद किए जाते हैं। माता लक्ष्मी के स्थान को सुगंधित करने के लिए केवड़ा, गुलाब, और चंदन के इत्र का उपयोग करें।
दीयों के लिए आप गाय के घी, मूंगफली, या तिल के तेल का प्रयोग कर सकते हैं, जो माता लक्ष्मी को शीघ्र प्रसन्न करते हैं। अन्य महत्वपूर्ण पूजा सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, और भोजपत्र शामिल हैं।
चौकी सजाना
चौकी पर इन वस्तुओं को व्यवस्थित करें:
- लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियां
- मिट्टी के दो बड़े दीपक
- कलश जिस पर नारियल रखें (वरुण का प्रतीक)
- नवग्रह और षोडश मातृकाएं
- प्रतीक रूप में बहीखाता, कलम, और दवात
- नकदी की संदूक और थालियां
लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम की ओर हो। लक्ष्मी जी गणेश जी की दाहिनी ओर रखें। पूजा करने वाले मूर्तियों के सामने बैठे। कलश को लक्ष्मी जी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि अग्रभाग दिखाई दे और इसे कलश पर रखें, जो वरुण देव का प्रतीक है।
दो बड़े दीपक रखें—एक में घी और दूसरे में तेल भरें। एक दीपक चौकी के दाईं ओर और दूसरा मूर्तियों के चरणों में रखें। इसके अलावा एक दीपक गणेश जी के पास भी रखें।
मूर्तियों वाली चौकी के सामने एक छोटी चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर नवग्रह की नौ ढेरियां और गणेश जी की ओर सोलह मातृका की प्रतीक ढेरियां बनाएं। इनके बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। बीच में सुपारी रखें और चारों कोनों पर चावल की ढेरियां बनाएं। सबसे ऊपर ‘ॐ’ लिखें।
छोटी चौकी के सामने तीन थालियां और जल भरा कलश रखें। थालियों में यह सामग्री रखें:
- 1. ग्यारह दीपक
- 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चंदन, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान
- 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक
पूजा करने वाला इन थालियों के सामने बैठे। परिवार के सदस्य बाईं ओर बैठें, और आगंतुक पीछे बैठें।
पूजन की संक्षिप्त विधि
आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको, पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं, स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥
अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
अब पृथ्वी को प्रणाम करें और पूजा स्थल को पवित्र करें। इसके बाद आचमन करें:
ॐ केशवाय नमः
ॐ नारायणाय नमः
ॐ वासुदेवाय नमः
गणेश पूजन
किसी भी पूजा की शुरुआत गणेश जी से होती है। सबसे पहले हाथ में पुष्प लेकर श्री गणेश का ध्यान करें और यह मंत्र पढ़ें:
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्।।
अब गणेश जी को पंचामृत से स्नान कराएं, और उन्हें वस्त्र, चंदन, सिन्दूर, दूर्वा, और बेलपत्र अर्पित करें। इसके बाद मिष्ठान्न और नैवेद्य अर्पित करें और आचमन कराएं।
लक्ष्मी पूजन
लक्ष्मी जी का ध्यान करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥
इसके बाद लक्ष्मी जी को स्नान कराएं और उन्हें लाल वस्त्र, आभूषण, और सुगंधित इत्र अर्पित करें। अंग पूजा, अष्टसिद्धि पूजा, और अष्टलक्ष्मी पूजा करें। अंत में माँ लक्ष्मी को नैवेद्य अर्पित करें और आरती करें।
पूजन के बाद सभी दीपकों को घर में अलग-अलग स्थानों पर रखें और माँ लक्ष्मी से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।