पौराणिक मन्त्र
ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरूं काञ्चनसंन्निभम् ।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ।
वेद मन्त्र
ऊँ बृहस्पते अति यदर्यो अहद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।
यदीदयच्छवस ऋत प्रजात ।
तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ।
ऊँ बृहस्पतये नमः ।
बीज मंत्र
ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः ।
जप संख्या – 19000
समय – संध्या काल
ग्रह पूजा मंत्र
ऊँ ऐं क्ली बृहस्पतये नमः ।
यह मंत्र बोलते हुए गुरु प्रतिमा अथवा यंत्र का पूजन करें ।
बृहस्पति की अनुकूलता के लिए उपाय
1. बृहस्पति के उपायों हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमें चीनी, केला, पीला वस्त्र, केशर, नमक, मिठाईयां, हल्दी, सोना, पीला फूल और भोजन उत्तम कहा गया है ।
2. इस ग्रह की शांति के लए बृहस्पति से सम्बन्धित रत्न का दान करना भी श्रेष्ठ होता है। दान करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो। दान किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को देना विशेष फलदायक होता है।
3. बृहस्पतिवार के दिन व्रत रखना चाहिए। ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए ।
4. रविवार और बृहस्पतिवार को छोड़कर अन्य सभी दिन पीपल के जड़ को जल से सींचना चाहिए ।
5. गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है अत: इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है ।
6. केला का सेवन और सोने वाले कमरे में केला रखने से बृहस्पति से पीड़ित व्यक्तियों की कठिनाई बढ़ जाती है अत: इनसे बचना चाहिए ।
7. ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए ।
8. सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए ।
9. ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए ।
10. किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए ।
11. ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए ।
12. गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए ।
13. गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए ।
गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे उपायों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं ।